मद्यपानी अभिभावकों का उनके बच्चों के नैतिक मूल्यों के पतन में

योगदान एंव समाधान

 

बीना1, डॉ. सुषमा सिंह2

1वरिष्ठ षोध अध्येता, गृह विज्ञान विभाग, ज्वालादेवी विद्या मंदिर पी.जी. कॉलेज, कानपुर.

2षोध निर्देेषिका, एसोसिएट प्रोफेसर गृह विज्ञान विभाग, ज्वाला देवी विद्या मंदिर पी.जी. कॉलेज, कानपुर.

*Corresponding Author E-mail: beenagupta0614@gmail.com, perfectsushma6@gmail.com

 

ABSTRACT:

प्रस्तुत षोधपत्र में मद्यपान करना व्यक्ति की सबसे बड़ी बुराई होती है सुल्तानपुर जिले में मद्यपानी अभिभावकों में उत्पन्न हुई समस्या जो उनके बच्चों में नैतिक मूल्यों के पतन के रुप में प्रकट हुई है। यह अत्यन्त ही चितंन का विषय है सरकार के द्धारा समय-समय मद्यपान को रोकने के लिए बहुत से कार्यक्रम भी चलाए गये। किसी भी बच्चे की प्रथम पाठषाला उसका परिवार होता है उसका लालन-पालन भरण-पोषण परिवार में ही होता है बालक के व्यक्तित्व के विकास में संस्कारो की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और अच्छे संस्कारों से ही नैतिक मूल्यों का विकास होता है और एक मद्यपानी अभिभावक कभी भी अपनी इस जिम्मेदारी को पूरा नहीं कर पाते क्योकि मद्यपानी अभिभावक जब मद्यपान करते है तब उनका मस्तिष्क काम नहीं करता उन्हे अच्छे बुरे की सुध-बुध नहीं रहती हैं वे इस स्थिति में होते ही नहीं है की वे अपने बच्चों को नैतिक मूल्यों का पाठ पढा सके। परन्तु वर्तमान समय में बाल अपराध के इजाफे को देखकर नैतिक मूल्यों की षिक्षा अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गई है। अतः प्रस्तुत अध्याय में मद्यपानी अभिभावक का उनके बच्चों के प्रति नैतिक मूल्यों की षिक्षा के विषय में सामान्य टिप्पणी प्रस्तुत की जाएगी जिससे इस समस्या का समाधान निकाला जा सके और उपयुक्त निष्कर्ष प्राप्त हो सके।

 

KEYWORDS: मद्यपान अभिभावकों.

 

 


 


प्रस्तावना &

मद्यपानी अभिभावकों के द्वारा मद्यपान करने से ही केवल वर्तमान सभ्यता बल्कि संस्कृति से जुड़ी हुई समस्या दृष्टिगोचर होती है मद्यपान का सेवन अति कालीन प्राचीन संे ही होता रहा है आर्य संस्कृति से जुडे लोग षराब को सोमरस कहते थे तथा उसका पान करते थे परन्तु वर्तमान समय में मदिरा एक अलग ही ढंग फैसन के रुप में उभर के सामने आया है मुगल काल में इसके बाद मद्यपान प्रतिष्ठत धनी वर्ग का मनपसंदीदा पेय पदार्थ था। परन्तु भारत मे वर्तमान समय में मदिरा एक आम प्रयोग का पेय हो गया है मदिरा का प्रयोग अब प्रत्येक त्यौहार-महोत्सव, लेन-देन के अलावा इसका प्रयोग सामान्य रुप से भी होने लगा है और वर्तमान समय में मद्यपान का आकर्षण छात्र-छात्राओं में बहुत अधिक बढ़ गया है। एक षोध से यह तथ्य सामने आया है कि भारत में 10 से 15 प्रतिषत लोग मदिरा का सेवन करते है मदिरा मे प्रतिदिन 8 अरब रुपये से अधिक व्यय होते है और महानगरों में तो मदिरा का प्रचार-प्रसार अत्याधिक तीव्र गति से हो रहा है।

 

बच्चे जिस वातावरण में रहते है उसी वातावरण में उनके चारों तरफ अनेक व्यक्ति होते हैं सामाजिक प्रत्याषाओं के अनुसार सामान्य व्यवहार सीखना एक धीमी और लम्बी प्रकिया होती है परन्तु बच्चों के लिए आवष्यक है विद्यालय जाने से पूर्व बच्चों को थोड़ा बहुत उचित अनुचित का ज्ञान हो धीरे-धीरे बच्चों से यह आषा की जाती है कि बच्चे स्वयं ही नैतिक चयन करने लग जायेगें कुछ समस्यात्मक बच्चें ऐसे भी होते हैं जो समाज के सामान्य नैतिक मूल्यों को स्वीकार नहीं करते उनका पालन नहीं करते यें बच्चें स्वंय को ही सदैव सही समझते हैं या स्वयं को समाज के नियमों से परे समझते है। अधिकतर ऐसी समस्या तब देखी जाती है जब ऐसे बच्चों को अपने अभिभावकों द्वारा उचित मार्गदर्षन प्राप्त नहीं होता है।

 

यदि अभिभवाक मद्यपानी हो तो ऐसे समस्यात्मक बच्चों की संख्या बढ़ जाती है फलस्वरुप ऐसे बच्चों को समाज के लोग भी बच्चों को समाज के लोग तिरस्कार करे देते हैं किसी भी बच्चे के लिए मूल्य, नैतिक मूल्य और चरित्र इन तीनों का अर्थ समझना बहुत ही आवष्यक है साथ ही साथ बच्चों को नैतिक मूल्यों का चरित्र के साथ सम्बन्ध के विषय में भी जानना आवष्यक है। नैतिक मूल्यों के अधिगम में बच्चों को अनेकांे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है उनकों कभी-कभी यह भ्रम भी हो सकता है कि समाज तथा समूह बच्चों के नैतिक मूल्यों के सम्बन्ध में कैसी प्रत्याषाएं रखता है जब इस तरह का भ्रम हो जाता है तो उसको नैतिक मूल्यांे को सीखने की प्रकिया धीमी हो जाती है गर्भावस्था के दौरान यदि गर्भवती स्त्री मद्यपन करती है तो इसका सीधा प्रभाव गर्भस्थ षिषु पर पड़ता है गर्भस्थ षिषु को मानसिक छति भी हो सकती है। ज्यादातर गर्भवती महिलाएँ सोचती है कि थोड़ी सी षराब से उन्हें कोई फर्क नही पड़ेगा लेकिन ऐसा नहीं है थोड़ी सी शराब जानलेवा हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला मदिंरा का सेवन करती हैं तो उसके पेट मंे पल रहे बच्चे का वजन उस समय बहुत ही कम हो जाता हैं तथा बच्चे के दिमाग पर इसका अत्याधिक बुरा प्रभाव पड़ता है। बच्चे की सज्ञंनात्मक क्रियाएं अवरुद्ध होती हैं और नैतिक मूल्यांे के विकास के लिए एक उपयुक्त मात्रा में बौद्विक षक्ति का विकास आवष्यक हैं क्यांेकि इसी के द्वारा बच्चे नैतिक मूल्यों के वास्तविक अर्थ का ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा सीखते हैं बच्चों को नैतिक मूल्यों का अधिगम करने में तब बहुत कठिनाई होती हैं जब परिवार के अन्य सदस्य नैतिक मूल्य के श्रणात्मक पक्ष पर अत्यधिक दबाव देते हैं और धनात्मक पक्ष पर कम दबाव देते हैं। बच्चों को स्कूल तथा परिवार से प्राप्त नैतिक मूल्यो में संमजस्य बांधना अवष्य आना चाहिए। बच्चों के नैतिक पतन के लिए अभिभावक विषेष रुप से जिम्मेदार होते हैं जब बच्चे का जन्म परिवार मे होता है तो उसकी परविष की पूरी जिम्मेदारी उस परिवार के सदस्यो पर ही होती है उसे जिस तरह के संस्कार दिए जाते हैं वह बच्चा बड़ा होकर उसी के अनुरुप कार्य करता हैं साथ ही साथ ही समाज का भी महत्वपूर्ण योगदान होता हैं इसलिए बच्चों को प्रारम्भ से ही अच्छे संस्कार प्रदान करने चाहिए जहाँ पर भी बच्चा कुछ गलत व्यवहार करे उसे उसी समय उचित व्यवहार के बारे में बता देना चाहिए इसके लिए बच्चों को नैतिक षिक्षा के साथ अपनी संस्कृति से भी रुबरु अवष्य कराना चाहिए नैतिक मूल्य हमारी संस्कृति के पहचान बताने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं जो अषिष्ट व्यवहार जिनको हमारे समाज द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होती उन्हें अनैतिक अषिष्टता की सज्ञां प्रदान की जाती है परिवार के साथ रहकर बच्चा परिवार के अन्य सदस्यों का अनुसरण करता हैं तथा उन्ही के अनुरुप व्यवहार करना षुरु कर देता है बच्चांे पर व्यवहारिक असर तुरंत होता है इसलिए परिवार के अन्य सदस्यांे का यह दायित्व होना चाहिए कि बच्चांे को षिष्ट और अषिष्ट व्यवहार के विषय में बताया जाए। वर्तमान समय में बच्चांे मंे सहनषक्ति का अत्याधिक अभाव होता है जिसका मुख्य कारण इन में नैतिक मूल्यो का अभाव है नैतिकता की कमी के कारण उनमंे अषिष्टता उत्पन्न हो रही है। अभिभावकों का मुख्य दायित्व अपने बच्चों का नैतिक मूल्य की षिक्षा प्रदान करना है। यदि अभिभावक मद्यपानी होगंे तो उन्हें स्वयं षिष्टता एवं अषिष्टता में अंतर पता नहीं होगा फलस्वरुप वह अपने बच्चों को नैतिक मूल्यांे की षिक्षा कैसे देगें। ऐसे दिन-प्रतिदिन उनके बच्चों का नैतिक पतन होगा तथा बच्चों मेे अनैतिक का एक मुख्य कारण उनके मद्यपानी अभिभावकों के पास समय का अभाव होना भी है। आज किसी मे मद्यपान करने वाले अभिभावक के पास अपने बच्चों के लिए समय नहीं है। अनेक माता-पिता या तो उनके लिए धन कमाने में बहुत व्यस्त हो गये हैं उन्हे इस बात का ज्ञान ही नहीं हैं कि जिस बच्चे के लिए वे धन एकत्रित कर रहे हैं वह कहाँ व्यय कर रहे हैं। अभिभावक अपनी आय का बहुत बड़ा हिस्सा अपने मद्य की लत पर व्यय कर रहेे हैं उनके पास इतना धन नहीं बचता कि वे अपने बच्चों की षिक्षा पर व्यय कर सकंे नैतिक मूल्यों की षिक्षा में स्कूल की अहम् भूमिका होती है स्कूल के कड़े अनुषासन में उचित अनुचित के विषय में भलि भाँति ज्ञान कराया जाता है और धन के अभाव में ऐसे बहुत बच्चें है जो स्कूल नहीं जा पाते हैं। वह नैतिक मूल्यों की षिक्षा से वचिंत रह जाते है। कई बार ऐसी स्थिति भी दृष्टिगोचर होती है कि बच्चें स्कूल में प्रवेष तो ले लेते हैं किसी तरह पर आगे स्कूल की महंगी फीस नहीं भर पाते हैं। फलस्वरुप उन्हे स्कूल को बीच में छोड़ना पड़ता है। मद्यपानी अपने बहुमूल्य समय मद्यपान करने में ही व्यय कर देते हैं बच्चांे को समय देने के अभाव के कारण बच्चे गलत मार्ग पर चले जाते हैं और अगर उन्हे समय रहते हुये उचित मार्ग पर लाया जाये तो आगे चलकर बहुत बड़े अपराधी बनते है। बच्चें भी अपने माता-पिता का अनुसरण करते है। अपने ही माता पिता को यह सेवन करता देख वे भी मद्य सेवन करने लगते हैं ऐसे तो वे स्वयं ही षुध-बुध खो देते है जिससे उन्हे स्वयं नैतिक मूल्यों का ज्ञान नहीं रहता

 

अध्ययन क्षेत्र

षोध हेतु

अध्ययन क्षेत्र के रुप में भारत के उत्तर प्रदेष राज्य के सुल्तानपुर जिले का चयन किया गया है। जहाँ सुल्तानपुर जिले में षहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र का चयन किया गया है। जिसमें मद्यपानी अभिभावको का उनके बच्चों के नैतिक मूल्यांे के पतन मे योगदान एंव समाधान षीर्षक का अध्ययन किया जायेगा।

 

समस्या का चयन

प्रस्तुत षोध विषय मद्यपानी अभिभावक को उनके बच्चांे के नैतिक मूल्यों के पतन मंे योगदान एवं समाधान समस्या का चयन किया गया है। वर्तमान समय में मद्यपान की समस्या प्रमुख समस्याओं में से एक है। मद्यपान की लत की वजह से मद्यपानी का पूरा जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है अत्याधिक मात्रा में मद्य सेवन करने से मद्यपानी व्यक्ति की स्मरण षक्ति समाप्त हो जाती है तथा मद्यपानी द्वारा अपनी इच्छाआंे को दमन करने की योग्यता भी समाप्त हो जाती है। मद्यपानी व्यक्ति जब मदिरा के नषे में होता है तो वह दूसरांे के हाथ के खिलौने की तरह होता है जिससे इस आदत की वजह से व्यक्ति पूरी तरह से षराब पर निर्भर हो जाता है जिस से उसके स्वास्थ्य पर अत्याधिक बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही साथ इस आदत से व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक परिणाम दृष्टिगोचर होते है। फलस्वरुप मद्यपानी अभिभावक उस स्थिति में नहीं होते हैं कि वे अपने बच्चांे को नैतिक मूल्यों की षिक्षा प्रदान कर सकें क्यांेकि जब व्यक्ति स्वयं नैतिक मूल्यों का पालन नही कर सकता तो वह परिवार के अन्य सदस्यो को नैतिक मूल्यों की क्या षिक्षा देगा। मदिरा की लत व्यक्ति को षारिरिक रुप से, मानसिक रुप से, नैतिक रुप से और आर्थिक रुप से पूर्णत बर्बाद कर देती है मदिरा के नषे में व्यक्ति दुराचारी मार्ग पर अग्रसर हो जाता है। अतः गृह विज्ञान की षोध छात्रा एवं उत्तर प्रदेष के सुल्तानपुर के जिले के निवासी होने के कारण मद्यपानी अभिभावकों का उसके बच्चों का नैतिक मूल्यों के पतन में योगदान एवं समाधान के लिए उपाय पर उत्सुकता के कारण मैंने इस विषय का चयन किया है।

 

उददेष्य

1. ग्रामीण तथा षहरी क्षेत्रों में रहने वाले लागों के मध्य मद्यपानी अभिभावकों के बच्चों पर नैतिक मूल्यांे के प्रभाव का अध्ययन करना।

2. मद्यपान की विभिन्न समस्याओं को बताने का प्रयास किया जायेगा।

3. सुल्तानपुर जिले में मद्यपान से उत्पन्न समस्या के समाधान को बताने का प्रयास किया जायेगा

 

उपकल्पना

1. ग्रामीण तथा षहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के मध्य मद्यपानी अभिभावकों के बच्चों पर नैतिक मूल्य के प्रभाव में कोई सार्थक अंतर नहीं है।

2. मद्यपानी अभिभावकों के कारण नैतिक मूल्यों का हनन होता है।

3. मद्यपान का प्रभाव स्वयं के साथ सम्पूर्ण परिवार पर पड़ता है।

 

साहित्यावलोकन

प्रस्तुत अध्ययन उत्तर प्रदेष राज्य के सुल्तानपुर जिले के विषेष सदंर्भ मे ‘‘मद्यपानी अभिभावकों का उनके बच्चों के नैतिक मूल्यों के पतन में योगदान एवं समाधान‘‘ यह एक गृह विज्ञान का अध्ययन है फिर भी वर्तमान समय में म़द्यपान विषय पर पर्याप्त साहित्य उपलब्ध है परन्तु सुल्तानपुर जिले में मद्यपानी अभिभावकों को उनके बच्चों के नैतिक मूल्यों पर प्रभाव पर अत्यंत ही कम साहित्य उपलब्ध है।

 

डा. श्रीवास्तव, डी.एन.एंव डा. वर्मा प्री. (2019), के अनुसार, बालक का नैतिक विकास परिवार के सदस्यों द्वारा एवं परिवार के वार्तावरण से प्रभावित होता है बच्चे के माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों का आचरण बच्चे के नैतिक मूल्यों को सर्वाधिक प्रभावित करता है बच्चों का लालन-पालन किस प्रकार किया गया है इस बात का भी नैतिक विकास पर प्रभाव दृष्टिगोचर होता है यदि बच्चे के परिवार के सदस्यों के साथ समायोजन अच्छा होता है तो बच्चे परिवार के सदस्यों का अनुकरण करके नैतिक मूल्यांे की षिक्षा अपेक्षाकृत ही स्वीकार कर लेते हैं परन्तु परिवार के सदस्य इस तरह से बच्चों को नैतिक षिक्षा प्रदान करते हैं इस तथ्य पर बच्चों के नैतिक मूल्यों का विकास निर्भर करता है।

 

सिंह, ., 2018 के अनुसार, मदिरा का प्रयोग ज्यादातर पुरुष करते है महिलाएं पुरुषों की तुलना में बहुत कम मदिरा का प्रयोग कम करती हैं परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि महिलाएं बिल्कुल मदिरा का प्रयोग नही करती हैं महिलाए एक सीमा तक मर्यादा में रहकर मदिरा पान करती है।

 

षोध प्रविधि

तथ्यो का सकंलन एवं विष्लेषण द्वितीय स्रोत द्वारा किया गया है।

 

विधि तंत्र

प्रस्तुत षोध को कई चरणो में पूर्ण किया गया है। क्षेत्र में सर्वेक्षण करने से पूर्व विषय से सम्बन्धित उपयुक्त पुस्तकों, षोध पत्रों, प्रकाषित लेखांे आदि का अध्ययन किया गया है। क्षेत्र में सर्वेक्षण के लिए प्रषनावली का निर्माण किया गया 120 मद्यिरा उपभोगियों से साक्षात्कार के द्धारा आकडों का सकंलन एवं विष्लेषण किया गया।

 

आंकड़ा कोष

प्रस्तुत षोध अध्ययन में 120 मद्यपान करने वाले व्यक्ति जो ग्रामीण षहरी क्षेत्र मंे निवास कर रहे हैं का अध्ययन यादिृच्छक विधि के माध्यम से किया गया है।

यह षोध कार्य सुल्तानपुर जिले के षहरी क्षेत्र मंे तहसील सदर एंव ग्रामीण क्षेत्र में सुदनापुर, गुप्तारंगज मे किया गया।

 

षोध की आवष्यकता

1. मदिरापान के प्रति लोगों को जागरुक करना।

2. मद्यपानी अभिभावकों के कारण उसके बच्चों का जो नैतिक पतन हो रहा है उसे रोकना।

3. बच्चों को बाल अपराध की ओर प्रवृत्त होने से रोकना।

4. मदिरापान से उत्पन समस्त समस्याओं से लोगो को अवगत कराना।

5. यथासम्भव समाज को मदिरा मुक्त करना।

6. मदिरा के कारण हो रही घरेलु हिसां को रोकनां।

 

मद्यपान की समस्या

1. सुल्तानपुर जिले में मद्यपान की वजह से नैतिक मूल्यों में कमी, आर्थिक तंगी, परिवार विघटन, घरेलु हिसंा तथा समाज में एक अषान्ति के वातावरण का निर्माण हो रहा है। मजदूर व्यक्ति अपने पूरी क्षमता से अपना दैनिक कार्य सम्पन्न नहीं कर पा रहा है।

2. सुल्तानपुर में मद्यपान के कारण परिवहन सम्बन्धित दुर्घटनाएँ दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं।

3. मद्यपानी अभिभावकांे के कारण बच्चे उचित रुप से षिक्षा से वचिंत हो रहे हैं।

4. मद्यपान के कारण सुल्तानपुर की विकास दर पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

5. सुल्तानपुर में मद्यपानी अभिभावकों की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित उनके बच्चे है।

 

समाधान

1. प्रत्येक ग्रामीण षहरी क्षेत्र में मदिरा से मुक्ति के लिए नारे, समस्या से सम्बन्धित षोध प्रकाषित करना, जगह-जगह पर पोस्टर चिपकाना, पम्पलेट वितरण आदि के माध्यम से व्यापक रुप से प्रचार प्रसार करना, सुल्तानपुर जिले की क्षेत्रीय भाषा अवधी है इसलिए जागरुक करने का माध्यम अवधि भाषा मंे होना चाहिए।

2. जो व्यक्ति मद्यपान से सम्बन्धित उचित उदाहरण प्रस्तुत करे उसे नगद राषि पुरस्कार वितरण कर प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे अन्य व्यक्ति भी देखकर उसका अनुसरण कर सके।

3. एक तालिका का निर्माण करना चाहिए और ऐसे लोगांे को चिन्हित करना चाहिए जिसमें प्रतिदिन साप्ताहिक एवं मासिक मद्यपान करने की सुची हो और जो लोग दैनिक रुप से मद्य सेवन कर रहे हों उनसे सम्पर्क स्थापित करके समझाना चाहिए और मद्यपान से उत्पन्न विभिन्न बीमारी बुराइयों के प्रति जागरुक करना चाहिए।

4. गाँव के नुक्कड़ में षराब मुक्ति के सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के भाषाण एवं नाटक तथा रोचक वाद विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करना और प्रतियोगियों को स्टेज पर सम्मानित करना।

5. जो व्यक्ति नियमित रुप से मद्यपान से करते है उन्हे नषा मुक्ति केन्द्र जाने के लिए प्रेरित करना।

6. नषा मुक्ति से सम्बन्धित समस्त आर्थिक सहायता निःषुल्क होनी चाहिए।

 

निष्कर्ष

सुल्तानपुर की भावी पीढी का उत्तम स्वास्थ्य ही सुन्दर सुल्तानपुर के निर्माण मंे सहायक है अतः मद्य निषेध जैसे गंभीर मुद्दे पर समग्र सुल्तानपुर के विकास को दृष्टिगत रखा जाना आवष्यक है सुल्तानपुर की सभ्यता एवं सास्कृति को बचाने के लिए यह नितान्त आवष्यक है तथा बाल अपराधीयों की सख्ंया की बढोतरी को रोकना है इसीलिए मंद्यनिषेध लागु कर के सुल्तानपुर में रहने वाले लोगों की नैतिक मूल्यों की रक्षा की जाये क्योंकि यह स्वीकार किया जा चुका है कि मदिंरा ही अपराधिक कार्य की जननी है।

 

संदर्भ ग्रन्थ सूची

1-     डॉ. श्रीवास्तव, डी.एन (2019)- बाल मनोविज्ञानः बाल विकास, श्री विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा।

2-     सिंह बृ., (2019)-बाल विकास, पंचषील प्रकासन, जयपुर-302003, भारत।

3-     गौड, सास्वत .-जीवन अवधि विकास, स्टार पब्लिकेषन, आगरा, भारत।

4-     षर्मा, सु. (2007)- स्वास्थ्य समस्या और समाधान, विष्व भारतीय पब्लिकेषन, दरियागज, नई दिल्ली-110002 भारत।

 

 

 

Received on 18.08.2022         Modified on 11.09.2022

Accepted on 08.10.2022         © A&V Publication all right reserved

Int. J. Ad. Social Sciences. 2022; 10(3):105-110.